Friday, 15 May 2020

पहचान

कितनी बार हमने सोचा है की कौन हैं हम? हमारी पहचान क्या है? लोग मुझे क्यों पसंद या नापसंद करते हैं ?शायद कभी जरूरत ही नहीं  पड़ी। हम खुश रहे जैसे भी रहे। जन्म हुआ तो माता पिता ने प्यार दिया म्हणत की पढ़ाया लिखाया अच्छे संस्कार देने की कोशिश की।  कोशिश इसलिए लिख रहीहूँ, की हमने कितना सीखा ये हम पर निर्भर करता है।  उन्हीने अपनी तरफ से कोई कमी नहीं रखी।  जितना था मिल बाँट के कहते थे खुश रहते थे।  कमी है इस बात का कभी एहसास भीनही हुआ इसलिए शिकायत भी नहीं थी।  

फिर एक दिन किसी से शादी हो जाती है। हम दुसरे घर मैं पहुँच जाते हैं।  यहाँ से शुरू होता है पहचान धूमिल होने का सिलसिला।  माता पिता के दिए संस्कारों के हिसाब से हम नए घर को अपनाने की कोशिश करने लगते हैं।  नए घर के सदस्य आपको कब कैसे और किस रूप मैं अपनाएंगे इसका हिसाब लगाने की आपको कभी कोशिश नहीं करना चाहिए। असल में जिस रूप मैं लेकर आये हैं उन्हें पूरा यकीन है की आपको वो अपने ढंग मैं ढाल ही लेंगे।  इसलिए उन्हें इस बात की फ़िक्र करने की ज़रा भी जरूरत नहीं है।

हाँ, तो हमने पहचान को पहचानने का सिलसिला शुरू किया था। तो शादी होती है एक इंसान से, गलत.. पूरे परिवार से। सब खाना पीना बैठना उठना, बोल चाल, किसी भी बात पे कब बोलना है कब नहीं, बोलना भी है की बिना बोल ही काम चल जायेगा ये सब समझते समझते हिसाब लगते लगते वो उमंग भरे दिन कब साल मैं बदल जाते हैं पता ही नहीं लगता।  एक लड़की पत्नी, बहु, फिर माँ भी बन जाती है।  लेकिन सिर्फ रिश्ते निभा रही होती है।  ख़ुशी से जी क्यों नहीं पाती। हर एक पल को ख़ुशी से समेत कर अपनी यादों मैं बसा सके ऐसा हो ही नहीं पाता।  छोटा सा बच्चा कब धीरे धीरे बड़ा होता जाता है इसका एहसास ही नहीं होता।  उसका बचपन जो माँ का हक़ है माँ ही उस मज़े से वंचित रह जाती है। तो देखा किस तरह सबको खुशियां देने के फेर में धीरे धीरे एक मासूम से लड़की जिसके अपने भी कुछ सपने और ख्वाहिशें होंगी, सब टाक पे रखकर अपनी ही हस्ती मिटा देती है है। बहुत देर बाद पता चलता है कि मैंने कुछ खो दिया है! काफी समय लग जाता है ये समझने मैं ककि  क्या है जो दिल को अच्छा नहीं लग रहा? सब ठीक चल रहा है, परिवार कुश है फिर मैं क्यों उतनी खुश नहीं? क्या कमी है? और जब तक समझ ात है किसी को भी समझना मुश्किल हो जाता है.

वजह ये है कि सभी ने आपको जिस रूप मैं देखा वो नियति बन गयी है। हमने खुद को जैसा दिखाया उन्होंने हमको वैसा ही समझा जो ठीक नहीं लगा उसमें सुधर करने की कोशिश की गयी और हम थोड़ा और बदल गए।  फिर थोड़ा और, थोड़ा और, थोड़ा और...! खुद को महत्त्व न देकर हमने अपना समर्पण किया लेकिन उनकी नज़र मैं वो आपका कर्त्तव्य था। यदि उन्होंने आपके लिए कुछ नहीं किया तो जरूरत नहीं समझी इसमें कौन सी बड़ी बात हो गयी।

कभी किसी ने ये जानने की कोशिश नहीं की कि जब लड़की को शादी करके हम अपने घर में लाते हैं तो ये लगभग एक नए जन्म के समान है। क्या हुआ चौंक गए क्या आप!! जी हाँ एक नया जन्म। नवजात शिशु धीरे धीरे चलना बैठना, खाना पीना परिवार के सदस्यों  है।  ठीक उसी प्रकार एक लड़की भी अपने नए परिवार को धीरे धीरे समझने की कोशिश करती है। उनके रंग ढंग मैं ढलने की कोशिश। फर्क बस उम्र का है की शिशु को एक अबोध बालक जानकार कोई उम्मीद नहीं रखता की उसको सब कुछ आता होगा बल्कि हम उसे धीरे धीरे प्यार से सीखने की पूरी कोशिश करते हैं खुद का चाहा हुआ बच्चा है तो अपनाने का तो प्रश्न ही उठता।  लेकिन इस लड़की से  वयस्क होने ने नाते सिर्फ उम्मीदें होती हैं कि सब आना चाहिए, देखो और सीखने की कोशिश करो, इतना तो पता होना ही चाहिए वगैरह वगैरह।  किसी हद तक गलत भी नहीं ये उम्मीदें लेकिन क्या ये लड़की प्यार की हकदार भी नहीं इसे भी तो आप ही चुन कर  हैं।

अफ़सोस की बात ये है की हम खुद को २१वीं सदी का कहते हैं २१वीं सदी का मतलब प्रगतिशील देश, नयी विचारधारा, नयी दिशाएँ, नए प्रयोग, नया उत्साह। लेकिन वो सब ऊपरी दिखावे की तरह है जो अंदर से पुराने ख्यालों और विचारधाराओं को बदलने मैं नाकामयाब साबित होते हैं। सिर्फ उम्मीद राखी जा सकती है कि आगे आने वाली पीढ़ियां इस  समझ के परिवार के इस नए सदस्य स्वागत करें और प्यार से अपनाएं तो जीवन एक नाह=यी तरंग के साथ शुरू होगा। परिवार खुशहाल होंगे आगे  नस्लें बेशक बहुत ही कुशल, सशक्त, और देश का नाम रोशन करने वाली होंगी।
किसी से उसकी पहचान मत छीनिये बल्कि उसकी अपनी पहचान को दिशा दीजिए की वो खुद को अपने परिवार को, समाज को एक मजबूत धागे में पिरो सके। प्यार और समय पे दिया गया मार्गदर्शन इंसान को आसमान की उचाईयां छूने के काबिल बना सकता है।  इसी सकारात्मक सोच के साथ इस आत्म कथा को यही विराम देती हूँ।  फिर मिलूंगी जल्दी ही एक नयी सोच के साथ। आज्ञा दीजिये।